संदेश

बाते कुछ मन की

अक्सर वो लोग तस्वीरों से गायब ही रहते है। जो तस्वीरें गढ़ने का काम करते हैं।। मन में बसती है जिनके सारी कुनबे की सुध, उस कुनबे की सुध से वो गायब से रहते है। दरख़्त कहे उसे एक भुला हुआ तो सच होगा, लेकिन वो तमाम पत्ते बस उसी की जद में रहते है।। ~~ अशीष।।

वंदन

मेरा वंदन है विष पीकर मुझको चन्दन ही रहने दो मेरे मन में तुम्हारी याद के बंधन तो रहने ही दो गरल (विष)का पान बन जाये शुधा (अमृत) मेरे लिए शायद कि सर्पो से लिपट करके   मुझे ये दंश सहने दो।।

एक पल

तेजी से गुजर रहा था एक पल मुश्किल था उसे पकड़ना फिर भी मेरे हाथ आ गया वो ........ मुट्ठी में मेरी समाँ गया वो मैंने कहा- ए लम्हे क्यों लगे है तुझको पर .... सुनूँगा मैं तुझसे ,... तेरी ....खबर सुनूँगा मुट्ठी में बहुत वो कसमसाया ,फिर लब पे सिकन वो अजीब लाया , बोला--- फकत यही कहूँगा लम्हा हूँ मगर ---- मैं सदी बनूँगा ..... ..... फिर मुट्ठी से मेरी निकल गया वो दू ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ र कही सदी बनने की तरफ उड़ गया वो।।

उसकी तारीफ

कभी आँसू कभी खुसबू कभी नगमा बनकर हमसे हर शाम मिली है तेरा चेहरा बनकर चाँद निकला है तेरी आँख के आँसू की तरह फूल महके है तेरी जुल्फ का साया बनकर मेरी जागी हुई हर रातों को उसी की है तलाश सो रहा है मेरी आँखों में जो सपना बनकर।।

अमर प्रीत।।

करके स्वप्निल मुझे जाल माया का बुन। अपने सपनो की दुनिया तु बुनती रही।। स्वप्न रंगती रही हाथ ले तूलिका रख के सांसो में संगीत तू प्रेम का मन की वीणा के तारों को छू श्वास से बन प्रणय गान स्वप्नों में बजती रही जब भी छू करके गुजरी है मुझको हवा मुझको अहसास तेरी छुवन का हुआ रातरानी सी मादक महक तेरी रिस के मेरे  ह्रदय में महकती  रही याद तेरी जहन में उमड़ती रही ज्वार सा कुछ ह्रदय में उठता रहा पर न जाने हुआ क्या न जाने पता तुम न आये यहाँ वक्त थम सा गया आँख रोइ नहीं शब्द फूटे नही साँस थी पर लगा , ... क्या ?रुक सी गई? मुझको तुमसे नहीं तुमको मुझसे नहीं रूह को रूह से थी मोहब्बत यहाँ मिलन ये जो धरा पर न मुमकिन हुआ पूरा करने को दोनों का अविरल मिलन मैं खड़ा था वही आत्मा चल पड़ी तुम शायद जरा देर से थे चले क्योकि आगे था मैं तुम पीछे दिखे हम मिले थे वहां दूर आकाश में न था कोई दिखावा ना बंदिश कोई ऐसे अपनी कहानी ये पूरी हुई।

पहरा

किसी के साथ का रिश्ता बहुत गहरा नहीं होता, किसी दरिया का पानी क्यों कभी ठहरा नहीं होता। कभी हँसती हंसाती तो कभी मुह फेर लेती है, यही है जिंदगी, इस पर कोई पहरा नहीं होता ।। वक्त के साथ में चल ऐ मुसाफिर जिंदगी की दौड़ बाकि है, सतत तू चल कि पाने को अभी अनगिन सपन राहों में बाकि है। चलेगा वक्त की शह पर तु घडियों की सुई जैसे, समय जब ख़त्म हो जायेगा, तुझको जाना ही होगा। जहाँ में प्यार को फैला, नरम हो कर के सबको मिल। वक्त तो रेत जैसा है, कभी ठहरा नहीं रहता।। यही है जिंदगी........... पहरा नही होता।।

प्रीत

तुम प्रीत सुधारस सागर में अपने मुझको बह जाने दो। मेरे नीर की नदिया के पानी से ,तेरा सागर सब भर जानें दो।। तुम प्रीत सुधारस सागर में........ मैं उड़ता सा एक बदरा हूँ - मुझे प्रेम समुद्र में गिरने दो, कब तक मैं उडूंगा बादल में - तुझमे कही पैठ बनाने दो।। तुम प्रीत सुधारस सागर में........ इक दूर कही मेरी मंजिल है ,मैं अकेला कहाँ चल पाउँगा। तेरा संग अगर मिल जायेगा - मैं सारे भँवर तर जाऊंगा । यूँ ना दूर रहो, मेरा जीवन हो ,सांसों मेँ मुझे बुन जानें दो।। तुम प्रीत सुधारस सागर में........ इस जीवन रूपी बगिया में ,तुम आत्मा रूपी माली हो, स्थूल शरीर सा बृक्ष हूँ मैं, तुम बिन -न कोई मोल मेरा। तुम स्वांस रूप सा जल देकर , मुझे जड़ो को और बढ़ाने दो।। तुम प्रीत सुधारस सागर में.......... धन्यवाद् आशीष मिश्रा।।