तुम प्रीत सुधारस सागर में अपने मुझको बह जाने दो। मेरे नीर की नदिया के पानी से ,तेरा सागर सब भर जानें दो।। तुम प्रीत सुधारस सागर में........ मैं उड़ता सा एक बदरा हूँ - मुझे प्रेम समुद्र में गिरने दो, कब तक मैं उडूंगा बादल में - तुझमे कही पैठ बनाने दो।। तुम प्रीत सुधारस सागर में........ इक दूर कही मेरी मंजिल है ,मैं अकेला कहाँ चल पाउँगा। तेरा संग अगर मिल जायेगा - मैं सारे भँवर तर जाऊंगा । यूँ ना दूर रहो, मेरा जीवन हो ,सांसों मेँ मुझे बुन जानें दो।। तुम प्रीत सुधारस सागर में........ इस जीवन रूपी बगिया में ,तुम आत्मा रूपी माली हो, स्थूल शरीर सा बृक्ष हूँ मैं, तुम बिन -न कोई मोल मेरा। तुम स्वांस रूप सा जल देकर , मुझे जड़ो को और बढ़ाने दो।। तुम प्रीत सुधारस सागर में.......... धन्यवाद् आशीष मिश्रा।।